मौत से लड़ाई

आज लगभग 18 सालों के बाद भी याद आने से आंखें नम हो जातीं हैं , दुनिया में इंसानियत लगभग ख़त्म हो चुकी है। मेरे छोटे बेटे के प्रसव के लिए जब घर से अस्पताल निकली तब मुझे ज़रा सी भी उम्मीद नहीं थी लेकिन मेरे कमजोर स्वास्थ्य के बावजूद मैंने 12 घंटों के बाद पूरी तरह स्वस्थ राकेश को जन्म दिया। तीन दिनों के बाद उसकी आंखें थोड़ी पीली दिखने से मैंने डॉक्टर से देखने का अनुरोध किया जिस पर उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया लेकिन पांच दिनों के बाद बच्चे को बचा सकने का आश्वासन भी देने में असमर्थता जाहिर की। मेरा डरना स्वाभाविक था लेकिन हिम्मत जुटाकर मैंने जूझने का फैसला किया और दिन रात जागकर बच्चे पर पूरी नज़र रखी ताकि सचमुच ही मैं मेरे बेटे को न खो बैठूं। थोड़ी सी असावधानी भी मेरे नवजात के लिए जानलेवा साबित हो सकती थी इसलिए रात और दिन बिना सोये रखवाली करना मेरा डर सा बन चुका था। सिवाय डर कुछ भी मन में था ही नहीं। हर नज़र यही पूछती थी कि कब तक ये लड़ाई चलेगी मौत से ? मैं लेकिन सिर्फ भगवान से जान की भीख मांगती रही और मेरी आशा निराशा में नह...